51 शक्तिपीठ के नाम और जगह | 51 Shakti Peeth List In Hindi

इस पोस्ट में हम आपको माता सती के शरीर के विभिन्न अंगों से निर्मित 51 शक्तिपीठ की लिस्ट उनके वर्तमान स्थान और वहाँ की अधिष्ठात्री शक्ति एवं भैरव के विषय में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं। पुराणों में 51 शक्तिपीठ के नाम और जगह का अलग-अलग प्रकार से वर्णन है। विभिन्न ग्रंथों में इनकी संख्या भी भिन्न-भिन्न बताई जाती है।

तंत्रचूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गयी है। देवीभागवत में 108 और देवीगीता में इनकी संख्या 72 बताई गयी है। कुछ अन्य ग्रंथों में भी शक्तिपीठों की संख्या भिन्न-भिन्न पाई जाती है। किन्तु देवीपुराण (महाभागवत) में शक्तिपीठों की संख्या 51 ही बताई गयी है। हिन्दू धर्म में इन 51 शक्तिपीठों का बहुत महत्व है। इनमें से ज्यादातर शक्तिपीठ मंदिर भारत में हैं और कुछ पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, तिब्बत और श्रीलंका) में।

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51 Shakti Peeth List In Hindi

Table of Contents

बंगाल के शक्तिपीठ

प्राचीन बंगभूमि, जिसमें वर्तमान बांग्लादेश भी सम्मिलित था, परंपरागत रूप से शक्ति उपासना का केन्द्र रही है। दुर्गापूजा यहाँ का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। इस भूभाग में 14 शक्तिपीठ स्थित हैं।

1. कालिका

कोलकाता पूर्वी भारत का एक महानगर और पश्चिम बंगाल की राजधानी है। यहाँ के कालीघाट स्थित कालीमंदिर की प्रसिद्धि शक्तिपीठ के रूप में सर्वमान्य है। यहाँ सतीदेह के दाहिने पैर की चार अंगुलियाँ (अँगूठा छोड़कर) गिरी थीं। यहाँ की शक्ति कालिका और भैरव नकुलीश हैं।

इस पीठ में महाकाली की भव्य मूर्ति विराजमान है, जिसकी लाल जिह्वा मुख के बाहर निकली हुई है। देवीमंदिर के समीप ही नकुलीश शिव का मंदिर स्थित है।

2. युगाद्या

पूर्वी रेलवे के वर्धमान जंक्शन से लगभग 32 Km उत्तर की ओर Kshirgram में यह शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ सतीदेह के दाहिने पैर का अँगूठा गिरा था। यहाँ की शक्ति भूतधात्री और भैरव क्षीरकण्टक हैं।

3. त्रिस्त्रोता

पूर्वोत्तर रेलवे में सिलीगुड़ी – हल्दीबाड़ी रेलवे लाइन पर जलपाईगुड़ी स्टेशन है। यह जिला मुख्यालय भी है। इस जिले के Bodaganj इलाके में शालवाड़ी ग्राम है। यहाँ तीस्ता नदी के तट पर देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ देवीदेह का वाम चरण (बायां पैर) गिरा था। यहाँ की शक्ति भ्रामरी और भैरव ईश्वर हैं।

4. बहुला

यह शक्तिपीठ हावड़ा से 144 Km तथा नवद्वीप से लगभग 40 Km दूर कटवा जंक्शन से पश्चिम केतुब्रह्म ग्राम या Ketugram में है। यहाँ देवीदेह का वाम बाहु (बायां हाथ) गिरा था। यहाँ की शक्ति बहुला और भैरव भीरुक हैं।

5. वक्त्रेश्वर

पूर्वी रेलवे की मेन लाइन में अण्डाल जंक्शन है, वहाँ से एक लाइन सैन्थिआ जाती है। इस लाइन पर अण्डाल से लगभग 35 Km की दूरी पर दुबराजपुर स्टेशन है। इस स्टेशन से 11 Km उत्तर में गरम जल के कई कुण्ड हैं। गरम जल के इन कुण्डों के समीप कई शिवमंदिर भी हैं। बाकेश्वर नाले के तट पर होने से यह स्थान Bakreshwar या वक्त्रेश्वर कहलाता है।

यह शक्तिपीठ श्मशान भूमि में स्थित है। यहाँ का मुख्य मंदिर बाकेश्वर या वक्त्रेश्वर शिवमंदिर है। यहाँ पापहरण कुण्ड है। जनश्रुति के अनुसार यहाँ अष्टावक्र ऋषि का आश्रम था। यहाँ देवीदेह का मन गिरा था। यहाँ की शक्ति महिषमर्दिनी और भैरव वक्त्रनाथ हैं।

6. नलहाटी

यह शक्तिपीठ बोलपुर शान्तिनिकेतन से 75 Km तथा सैन्थिया जंक्शन से मात्र 42 Km दूर Nalhati Railway Station से 3 Km की दूरी पर दक्षिण पश्चिम दिशा में एक ऊँचे टीले पर स्थित है। यहाँ देवीदेह की उदरनली का पतन हुआ था। कुछ लोगों की मान्यता है कि यहाँ शिरोनली का पतन हुआ था। यहाँ की शक्ति कालिका और भैरव योगीश हैं।

7. नन्दीपुर

पूर्वी रेलवे की हावड़ा-किऊल लाइन में Sainthia Railway Station से कुछ ही दूरी पर नन्दीपुर नामक स्थान ( जो अब सैन्थिआ टाउन का ही एक भाग है ) में एक विशाल वटवृक्ष के नीचे नन्दिकेश्वरी माता का मंदिर स्थित है जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवीदेह से कण्ठहार (आभूषण) गिरा था। यहाँ की शक्ति नन्दिनी और भैरव नन्दिकेश्वर हैं।

8. अट्टहास

यह शक्तिपीठ वर्धमान से 93 Km दूर कटवा-अहमदपुर लाइन पर Labpur Railway Station के नजदीक है। यहाँ देवीदेह का अधरोष्ठ (नीचे का होठ) गिरा था। यहाँ की शक्ति फुल्लरा और भैरव विश्वेश हैं।

9. किरीट

यह शक्तिपीठ मुर्शिदाबाद जिले के लालबाग़ कोर्ट रोड स्टेशन से मात्र 3 Km और दाहापारा स्टेशन से 5 Km की दूरी पर किरीटकोना ग्राम में स्थित है। यहाँ देवीदेह का किरीट (मुकुट) गिरा था। यह मंदिर किरीटेश्वरी या मुकुटेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ की शक्ति विमला और भैरव संवर्त हैं।

10. यशोर

यह शक्तिपीठ वृहत भारत के बंगाल प्रदेश में और वर्तमान में बांग्लादेश में स्थित है। यह मंदिर खुलना डिवीज़न के Ishwaripur में है। यहाँ देवीदेह की वाम हथेली गिरी थी। यहाँ की शक्ति यशोरेश्वरी और भैरव चन्द्र हैं।

11. चट्टल

यह शक्तिपीठ भी बांग्लादेश में है। यह Chattogram से 38 Km दूर Sitakund Railway Station के पास चन्द्रशेखर पर्वत पर भवानी मंदिर के रूप में स्थित है। यहाँ चन्द्रशेखर शिव का मंदिर भी है। इस क्षेत्र में सीताकुण्ड, व्यासकुण्ड, सूर्यकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड, जनकोटिशिव, सहस्त्रधारा, बाडवकुण्ड तथा लवणाक्ष तीर्थ हैं।

बाडवकुण्ड में से निरंतर आग निकला करती है। शिवरात्रि को यहाँ मेला लगता है। यहाँ देवीदेह का दक्षिण बाहु (दाहिना हाथ) गिरा था। यहाँ की शक्ति भवानी और भैरव चन्द्रशेखर हैं।

12. करतोयातट

वर्तमान में यह शक्तिपीठ भी बांग्लादेश में ही है। यह बोगरा (Bogura) रेलवे स्टेशन से 32 Km दूर भवानीपुर ग्राम में स्थित है। यहाँ देवीदेह का बायाँ तल्प गिरा था। यहाँ की शक्ति अपर्णा और भैरव वामन हैं।

13. विभाष

यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में Tamluk में है। वहाँ रूपनारायण नदी के तट पर वर्गभीमा का विशाल मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है। दक्षिण-पूर्व रेलवे के पांसकुड़ा स्टेशन से 24 Km की दूरी पर यह स्थान है। यहाँ देवीदेह का बायाँ टखना (एड़ी के ऊपर की हड्डी) गिरी थी। यहाँ की शक्ति कपालिनी भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं।

14. सुगंधा

यह शक्तिपीठ भी वर्तमान में बांग्लादेश में है। बरिशाल (Barishal) से 21 Km उत्तर में शिकारपुर ग्राम में सुगंधा (सुनंदा) नदी के तट पर सुगंधा देवी का मंदिर है, यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवीदेह की नासिका गिरी थी। यहाँ की शक्ति सुनंदा और भैरव त्र्यम्बक हैं।

मध्यप्रदेश के शक्तिपीठ

देश के अन्य प्रान्तों की भाँति मध्यप्रदेश में भी देवी उपासना की अत्यंत प्राचीन परंपरा है। यहाँ के बुंदेलखंड, नेमाड़ तथा मालवा अंचलों में लोकदेवी के रूप में देवीपूजन की प्रथा है। इस प्रदेश में 4 शक्तिपीठ हैं।

15. भैरव पर्वत

इस शक्तिपीठ के सन्दर्भ में विद्वानों के दो मत हैं। कुछ विद्वान गुजरात में गिरनार के निकट स्थित भैरव पर्वत को शक्तिपीठ मानते हैं तो कुछ विद्वान मध्यप्रदेश में उज्जैन के निकट क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित भैरव पर्वत को शक्तिपीठ मानते हैं। यहाँ देवीदेह का ऊर्ध्व ओष्ठ (ऊपर का होठ) गिरा था। यहाँ की शक्ति अवन्ती और भैरव लम्बकर्ण हैं।

16. रामगिरि

इस शक्तिपीठ के सम्बन्ध में दो मान्यताएँ हैं। कुछ विद्वान चित्रकूट के शारदा मंदिर को और कुछ विद्वान मैहर के शारदा मंदिर को यह शक्तिपीठ बताते हैं। दोनों ही स्थान प्रसिद्ध तीर्थ हैं और मध्यप्रदेश में स्थित हैं। यहाँ देवीदेह का दाहिना स्तन गिरा था। यहाँ की शक्ति शिवानी और भैरव चण्ड हैं।

17. उज्जयिनी

उज्जैन में रुद्रसागर या रुद्रसरोवर के नजदीक हरसिद्धि देवी का मंदिर है, इसे ही शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ देवीदेह की कुहनी गिरी थी। यहाँ की शक्ति मंगलचण्डिका और भैरव मांगल्यकपिलाम्बर हैं।

18. शोण

अमरकण्टक के नर्मदा मंदिर में यह शक्तिपीठ माना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार बिहार राज्य के डेहरि ओन सोन (Dehri On Sone) स्टेशन से कुछ दूर स्थित ताराचण्डी मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ देवीदेह का दाहिना नितम्ब गिरा था। यहाँ की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी और भैरव भद्रसेन हैं।

तमिल नाडु के शक्तिपीठ

भारत का सुदूर दक्षिण राज्य तमिल नाडु प्राचीन द्रविड़ सभ्यता का केन्द्र है। यहाँ देवीपूजा की अति प्राचीन परम्परा रही है। साक्षात् भगवती पार्वती ने अपने अंश से मीनाक्षी रूप में अवतार लेकर इस भूभाग को पावन किया है। इस प्रदेश में भगवती जगदम्बा के 4 शक्तिपीठ हैं।

19. शुचि

तमिल नाडु में कन्याकुमारी से 13 Km दूर Suchindram में स्थाणु शिव का मंदिर है। उसी मंदिर में यह शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ देवीदेह के ऊर्ध्व दन्त (ऊपर के दांत) गिरे थे। यहाँ की शक्ति नारायणी और भैरव संहार या संकूर हैं।

20. रत्नावली

यह शक्तिपीठ चेन्नई के पास है पर स्थान अज्ञात है। यहाँ देवीदेह का दक्षिण स्कन्ध (दाहिना कंधा) गिरा था। यहाँ की शक्ति कुमारी और भैरव शिव हैं।

  • नाम – रत्नावली शक्तिपीठ
  • स्थान – अज्ञात

21. कन्यकाश्रम

तमिल नाडु में तीन सागरों के संगम स्थल पर कन्याकुमारी का मंदिर है। उस मंदिर में ही भद्रकाली का भी मंदिर है। ये कुमारी देवी की सखी हैं, उनका मंदिर ही शक्तिपीठ है। यहाँ देवीदेह का पृष्ठभाग गिरा था। यहाँ की शक्ति शर्वाणी और भैरव निमिष हैं।

22. काञ्ची

तमिल नाडु में Kanchipuram स्टेशन से कुछ दूरी पर कामाक्षी देवी का विशाल मंदिर है। इस मंदिर को दक्षिण भारत का सर्वप्रधान शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ देवीदेह का कंकाल (अस्थिपिंजर) गिरा था। यहाँ की शक्ति देवगर्भा और भैरव रुरु हैं।

बिहार के शक्तिपीठ

बिहार में देवीपूजन की परम्परा वहाँ के लोकजीवन में समाहित है। भगवती षष्ठी, चण्डी, बूढ़ी माई आदि विभिन्न रूपों में यहाँ देवी उपासना की जाती है। यहाँ का मिथिला अंचल तो साक्षात् जगत्जननी देवी सीता जी का जन्मस्थल ही रहा है। यह शक्ति उपासना के वैष्णव और तांत्रिक, दोनों रूपों का केंद्र है। इस प्रदेश में देवीदेह के अंगों से निर्मित 3 शक्तिपीठ हैं।

23. मिथिला

इस शक्तिपीठ का निश्चित स्थान अज्ञात है। मिथिला में कई ऐसे देवीमंदिर हैं, जिन्हें लोग शक्तिपीठ बताते हैं। इनमें से एक मधुबनी रेलवे स्टेशन से लगभग 25 Km की दूरी पर Uchchaith नामक स्थान पर स्थित है। दूसरा सहरसा स्टेशन के पास देवी उग्रतारा का मंदिर है। तीसरा समस्तीपुर से पूर्व 61 Km दूर सलौना रेलवे स्टेशन से 9 Km दूर जयमंगला देवी का मंदिर है।

उक्त तीनों मंदिर विद्वानों के द्वारा शक्तिपीठ माने जाते हैं। यहाँ देवीदेह का वाम स्कन्ध (बायां कंधा) गिरा था। पर उग्रतारा मंदिर के विषय में मान्यता है कि वहाँ देवी भगवती का नेत्र गिरा था। यहाँ की शक्ति उमा या महादेवी और भैरव महोदर हैं।

24. वैद्यनाथ

बैद्यनाथधाम शिव और शक्ति के ऐक्य का प्रतीक है। यह वर्तमान झारखण्ड राज्य के देवघर जिले में स्थित है। नजदीकी रेलवे स्टेशन जसीडीह है जो हावड़ा-किउल लाइन पर स्थित है। यहाँ भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग और 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ भी है। यह स्थान चिताभूमि में है।

एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने देवीदेह का यहीं दाह-संस्कार किया था। यहाँ देवीदेह का ह्रदय गिरा था। यहाँ की शक्ति जयदुर्गा और भैरव वैद्यनाथ हैं।

25. मगध

बिहार की राजधानी पटना में स्थित बड़ी पटनेश्वरी देवी के मंदिर की शक्तिपीठ के रूप में मान्यता है। यहाँ देवीदेह की दाहिनी जंघा का पतन हुआ था। यहाँ की शक्ति सर्वानन्दकरी और भैरव व्योमकेश हैं।

उत्तर प्रदेश के शक्तिपीठ

पुण्यसलिला गंगा और यमुना की पावनस्थली, माता विन्ध्यवासिनी की निवासस्थली और श्री राधारानी की लीलास्थली उत्तर प्रदेश की धरती देवीमय है। यहाँ देवी के अनेक मंदिर, विग्रह तथा प्रतीक हैं। इस भूभाग में देवी के 3 दिव्य शक्तिपीठ हैं।

26. वृन्दावन

मथुरा-वृन्दावन के बीच भूतेश्वर नामक रेलवे स्टेशन के समीप भूतेश्वर मंदिर के प्रांगण में यह शक्तिपीठ अवस्थित है। यह स्थान चामुण्डा कहलाता है। तन्त्रचूड़ामणि में इसे मौली शक्तिपीठ माना गया है। यह स्थान महर्षि शाण्डिल्य की साधना स्थली भी रही है। यहाँ देवीदेह के केशपाश का पतन हुआ था। यहाँ की शक्ति उमा और भैरव भूतेश हैं।

27. वाराणसी

वाराणसी के मीर घाट पर धर्मेश्वर महादेव मंदिर के नजदीक विशालाक्षी माता का प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ भगवान विश्वनाथ विश्राम करते हैं और सांसारिक कष्टों से पीड़ित मनुष्यों को विश्रान्ति देते हैं। यहाँ देवीदेह की दाहिनी कर्ण-मणि गिरी थी। यहाँ की शक्ति विशालाक्षी और भैरव कालभैरव हैं।

28. प्रयाग

अक्षयवट के निकट ललितादेवी का मंदिर है, कुछ विद्वान इसे ही शक्तिपीठ मानते हैं। कुछ विद्वान अलोपी माता के मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं, वहाँ भी ललितादेवी का ही मंदिर है। एक अन्य मान्यता के अनुसार मीरापुर में ललितादेवी का शक्तिपीठ है। यहाँ देवीदेह के हाथों की अंगुलियाँ गिरी थीं। यहाँ की शक्ति ललिता और भैरव भव हैं।

राजस्थान के शक्तिपीठ

वीरभूमि राजस्थान की आराध्या आदि शक्ति जगदम्बा ही हैं। पूरे प्रदेश में उनके अनेक मंदिर तथा स्थान हैं। इस भूभाग में देवी के 2 शक्तिपीठ हैं।

29. मणिवेदिक

राजस्थान में पुष्कर सरोवर के एक ओर पर्वत की चोटी पर सावित्री देवी का मंदिर है, उसमें सावित्री देवी की तेजोमयी प्रतिमा है। दूसरी ओर दूसरी पहाड़ी की चोटी पर गायत्री मंदिर है, यह गायत्री मंदिर ही शक्तिपीठ है। यहाँ देवीदेह के मणिबन्ध (कलाइयाँ) गिरी थीं। यहाँ की शक्ति गायत्री और भैरव शर्वानन्द हैं।

30. विराट

जयपुर से 64 Km उत्तर में महाभारतकालीन विराटनगर के पुराने खण्डहर हैं, इनके पास में ही एक गुफा है, जिसे भीम का निवासस्थान कहा जाता है। यहाँ अन्य पाण्डवों की भी गुफाएँ हैं। पाण्डवों ने वनवास का अंतिम वर्ष अज्ञातवास के रूप में यहीं बिताया था।

जयपुर तथा अलवर दोनों स्थानों से यहाँ आने के लिए मार्ग है। इसी विराटनगर में यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवीदेह के दाहिने पैर की अंगुलियाँ गिरी थीं। यहाँ की शक्ति अम्बिका और भैरव अमृत हैं।

गुजरात के शक्तिपीठ

अन्य प्रदेशों की भाँति गुजरात भी शक्ति साधना एवं उपासना का केंद्र है। यहाँ आशापुरा, अभयमाता, सुंदरी तथा खोडियार माता आदि अनेक रूपों में देवी की पूजा होती है। यहाँ अनेक प्राचीन देवीमंदिर हैं। इस प्रदेश में देवीदेह के अंगों से निर्मित 1 शक्तिपीठ है।

31. प्रभास

गुजरात में गिरनार पर्वत के शिखर पर देवी अम्बिका का विशाल मंदिर है। एक मान्यता के अनुसार स्वयं जगज्जननी देवी पार्वती हिमालय से आकर यहाँ निवास करती हैं। अम्बिका ( आरासुरी अम्बाजी ) के इस मंदिर को ही शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ देवीदेह का उदरभाग गिरा था। यहाँ की शक्ति चन्द्रभागा और भैरव वक्रतुण्ड हैं।

आंध्र प्रदेश के शक्तिपीठ

आंध्र प्रदेश देवस्थानों के लिए पुरे भारत में प्रसिद्ध है। यहाँ शिव, विष्णु, गणेश, कार्तिकेय आदि देवताओं की उपासना की जाती है। देवी के मंदिरों और पीठों की भी यहाँ कमी नहीं है। 51 शक्तिपीठों में से 2 इसी प्रदेश में अवस्थित हैं।

32. गोदावरी तट

आंध्र प्रदेश के Rajahmundry में गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर मंदिर में यह शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ देवीदेह का बायाँ गाल गिरा था। यहाँ की शक्ति विश्वेशी और भैरव दण्डपाणि हैं।

33. श्रीशैल

श्रीशैल में भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक मल्लिकार्जुन नामक ज्योतिर्लिंग है। वहीँ पास में भगवती भ्रमराम्बा देवी का मंदिर है। यह मंदिर ही शक्तिपीठ है, यहाँ देवीदेह की ग्रीवा (गर्दन) का पतन हुआ था। यहाँ की शक्ति महालक्ष्मी और भैरव संवरानन्द (ईश्वरानन्द) हैं।

महाराष्ट्र के शक्तिपीठ

महाराष्ट्र में भी देवी उपासना की प्राचीन परंपरा रही है। तुलजा भवानी इस प्रदेश की कुलदेवी हैं। मुम्बादेवी के नाम पर ही इस प्रदेश की राजधानी का नाम मुंबई है। जगज्जननी जगदम्बा देवी महालक्ष्मी का नित्य निवासस्थल कोल्हापुर भी इसी राज्य में है। कालबादेवी, अम्बाजोगाई, रखुमाई आदि अनेक रूपों में यहाँ देवी की पूजा होती है। इस प्रदेश में 2 शक्तिपीठ हैं।

34. करवीर

वर्तमान कोल्हापुर ही पुराणों में वर्णित करवीर क्षेत्र है। यहाँ महालक्ष्मी का विशाल मंदिर है। इसे लोग अम्बाबाई का मंदिर भी कहते हैं। इसके पास में ही पद्मसरोवर, काशीतीर्थ और मणिकर्णिका तीर्थ हैं। यहाँ काशी विश्वनाथ, जगन्नाथ जी आदि देवमंदिर हैं।

यहाँ का महालक्ष्मी मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है। देवीदेह के तीनों नेत्र यहाँ गिरे थे। यहाँ की शक्ति महिषमर्दिनी और भैरव क्रोधीश हैं। यहाँ भगवती महालक्ष्मी का नित्य निवास माना जाता है। यह क्षेत्र बड़ा ही पुण्यमय तथा दर्शनमात्र से पापों का नाश करने वाला है।

35. जनस्थान

नाशिक के पास पंचवटी में स्थित भद्रकाली ( Saptashrungi Mata ) के मंदिर की शक्तिपीठ के रूप में मान्यता है। यहाँ देवीदेह की ठुड्डी गिरी थी। यहाँ की शक्ति भ्रामरी और भैरव विकृताक्ष हैं।

कश्मीर के शक्तिपीठ

हिमालय का पवित्र और मनोरम स्थल कश्मीर, माता वैष्णो देवी का निवास स्थान है। रुद्रयामल तंत्र में इसे शक्ति और शिव के साक्षात्कार का प्रवेशद्वार कहा गया है। इस क्षेत्र में देवी के 2 शक्तिपीठ हैं।

36. श्रीपर्वत

श्रीपर्वत शक्तिपीठ लद्दाख में स्थित है। यहाँ देवीदेह का दक्षिण तल्प गिरा था। यहाँ की शक्ति श्रीसुन्दरी और भैरव सुन्दरानन्द हैं।

37. कश्मीर

कश्मीर में अमरनाथ की गुफा में भगवान शिव के हिम ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं। यहाँ एक गणेशपीठ और एक पार्वतीपीठ भी हिमनिर्मित बनता है। यह पार्वतीपीठ ही शक्तिपीठ है। श्रावण पूर्णिमा को अमरनाथ के दर्शन के साथ-साथ यह शक्तिपीठ भी दिखाई देता है।

यहाँ देवीदेह के कण्ठ का पतन हुआ था। यहाँ देवी सती के अंग तथा अंगभूषण – कण्ठप्रदेश की पूजा होती है। यहाँ की शक्ति महामाया और भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।

38. पंजाब का जालन्धर शक्तिपीठ

जालन्धर पंजाब के मुख्य नगरों में से एक है। एक किवदन्ती के अनुसार इसे जलन्धर नामक दैत्य की राजधानी माना जाता है, जिसका भगवान शंकर ने वध किया था। यहाँ विश्वमुखी देवी का मंदिर है। इसे प्राचीन त्रिगर्त तीर्थ कहते हैं। यह मंदिर (श्री देवी तालाब मंदिर) ही शक्तिपीठ है। यहाँ देवीदेह का वाम स्तन गिरा था। यहाँ की शक्ति त्रिपुरमालिनी और भैरव भीषण हैं।

39. उड़ीसा का उत्कल शक्तिपीठ

इस शक्तिपीठ के स्थान के विषय में दो मान्यताएँ हैं। प्रथम मान्यता के अनुसार पुरी में जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में स्थित विमलादेवी का मंदिर ही शक्तिपीठ है। यहाँ देवीदेह की नाभि गिरी थी। यहाँ की शक्ति विमला और भैरव जगन्नाथ हैं।दूसरी मान्यता के अनुसार जाजपुर में ब्रह्मकुण्ड के समीप स्थित विरजादेवी का मंदिर शक्तिपीठ है, कुछ विद्वान इसी को नाभिपीठ मानते हैं।

जाजपुर नाभिगया क्षेत्र माना जाता है, यहाँ श्राद्ध, तर्पण आदि का विशेष महत्व है। उड़ीसा के चार प्रमुख स्थानों – पुरी, भुवनेश्वर, कोणार्क और जाजपुर में से यह एक मुख्य स्थान है। इसे चक्रक्षेत्र माना जाता है। यहाँ वैतरणी नदी है। वैतरणी नदी के घाट से लगभग 2 Km की दूरी पर प्राचीन गरुड़ स्तम्भ है, इसी के पास विरजादेवी का मंदिर स्थित है।

40. हिमाचल प्रदेश का ज्वालामुखी शक्तिपीठ

पठानकोट जोगिन्दर नगर रेलमार्ग पर स्थित ज्वालामुखी रोड स्टेशन से लगभग 21 Km दूर कांगड़ा जिले में कालीधर पर्वत की सुरम्य घाटी में ज्वालामुखी शक्तिपीठ है। यहाँ ज्वाला देवी माता का भव्य मंदिर है। इस स्थान पर देवीदेह की जिह्वा का पतन हुआ था। यहाँ की शक्ति सिद्धिदा और भैरव उन्मत्त हैं।

मंदिर के भीतर पृथ्वी में से मशाल जैसी ज्योति निकलती रहती है। शिवपुराण और देवीभागवत के अनुसार इसी को देवी का ज्वाला रूप माना गया है।

41. असम का कामरूप ( कामाख्या ) शक्तिपीठ

देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों में कामरूप ( कामाख्या ) को सर्वोत्तम कहा गया है। गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर कामगिरी पर्वत पर भगवती आद्याशक्ति कामाख्यादेवी का पावन पीठ विराजमान है। कामाख्या माता का मंदिर जिस पहाड़ी पर है उसे नीलपर्वत भी कहते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवीदेह के योनिभाग के गिरने से इसे योनिपीठ कहा गया है।

यहाँ की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द (उमानाथ) हैं। यहाँ भगवती कामाख्या की पूजा-उपासना तंत्रोक्त विधि से की जाती है। दूर-दूर से आनेवाले श्रद्धालु आद्याशक्ति की पूजा अर्चना कर मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं।

42. मेघालय का जयन्ती शक्तिपीठ

मेघालय पूर्वी भारत में स्थित एक पर्वतीय राज्य है। गारो, खासी और जयंतिया यहाँ की मुख्य पहाड़ियां हैं। यहाँ की जयंती पहाड़ी पर स्थित जयन्ती माता के मंदिर ( Shri Nartiang Durga Temple ) को ही शक्तिपीठ माना जाता है। यह शक्तिपीठ शिलांग से 53 Km दूर है। यहाँ देवीदेह की वाम जंघा का पतन हुआ था। यहाँ की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।

43. त्रिपुरा का त्रिपुरसुन्दरी शक्तिपीठ

त्रिपुरा भी पूर्वी भारत का एक राज्य है। यहाँ भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी का भव्य मंदिर ( Tripureshwari Temple ) है, उन्हीं के नाम पर इस राज्य का नाम त्रिपुरा पड़ा। इस राज्य के राधाकिशोरपुर ग्राम से लगभग 3 Km की दूरी पर दक्षिण पश्चिम दिशा में यह शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ देवीदेह का दक्षिणपाद (दाहिना पैर) गिरा था। यहाँ की शक्ति त्रिपुरसुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं।

44. हरियाणा का कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ

हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र में ब्रह्म सरोवर के पास भद्रकाली माता का मंदिर (Shri Devikoop Temple) है, इसे ही यह शक्तिपीठ माना जाता है। कहते हैं कि महाभारत युद्ध से पहले पांडवों ने विजय की कामना से यहाँ माँ काली का पूजन और यज्ञ किया था। यहाँ देवीदेह का दक्षिण गुल्फ (दायाँ टखना) गिरा था। यहाँ की शक्ति सावित्री और भैरव स्थाणु हैं।

45. कालमाधव शक्तिपीठ

यहाँ पर देवीदेह का वाम नितम्ब गिरा था। यहाँ की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं। इस शक्तिपीठ के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता है कि यह कहाँ है।

नेपाल के शक्तिपीठ

सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से नेपाल और भारत अभिन्न हैं। हिन्दुओं के अनेक तीर्थस्थल नेपाल में हैं, जो नेपाली और भारतीय लोगों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। नेपाल में देवी के दो शक्तिपीठ हैं।

46. गण्डकी

यह शक्तिपीठ नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम स्थल पर मुक्तिनाथ मंदिर में स्थित है। यहाँ देवीदेह का दक्षिण गण्ड (कपोल) गिरा था। यहाँ की शक्ति गण्डकी तथा भैरव चक्रपाणि हैं।

47. नेपाल

नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर से थोड़ी दूरी पर बागमती नदी पड़ती है। नदी के उस पार भगवती गुह्येश्वरी का सिद्ध शक्तिपीठ है। ये नेपाल की अधिष्ठात्री देवी हैं। सारा नेपाल इन गुह्यकालिका देवी की अनन्य भक्ति से वंदना करता है। यहाँ का मंदिर विशाल एवं भव्य है। मंदिर में एक छिद्र है, जिसमें से निरंतर जल प्रवाहित होता रहता है। यह मंदिर ही शक्तिपीठ है। यहाँ देवीदेह के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहाँ की शक्ति महामाया तथा भैरव कपाल हैं।

48. पाकिस्तान का हिंगुला शक्तिपीठ

यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज नामक स्थान में है। हिंगलाज कराँची से 144 Km दूर उत्तर पश्चिम दिशा में हिंगोल नदी के तट पर है। यहाँ एक गुफा के अंदर हिंगलाज देवी का स्थान है। यहाँ देवीदेह का ब्रह्मरन्ध्र (मस्तक) गिरा था। यहाँ की शक्ति कोट्टरी तथा भैरव भीमलोचन हैं।

पुराणों में हिंगुलापीठ की बड़ी महिमा बताई गयी है। श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में वर्णन आया है कि हिमालय के पूछने पर देवी ने अपने प्रिय स्थानों को बताया, उसमें हिंगुला को महास्थान कहा गया है।

49. श्रीलंका का लंका शक्तिपीठ

इस शक्तिपीठ में देवीदेह का नूपुर (पायल) गिरा था। यहाँ की शक्ति इन्द्राक्षी और भैरव राक्षसेश्वर कहलाते हैं।

50. तिब्बत का मानस शक्तिपीठ

यह शक्तिपीठ चीन अधिकृत तिब्बत में मानसरोवर के तट पर स्थित है। यहाँ देवीदेह की दायीं हथेली गिरी थी। यहाँ की शक्ति दाक्षायणी और भैरव अमर हैं।

51. पञ्चसागर शक्तिपीठ

इस पीठ के स्थान का निश्चित पता नहीं है। यहाँ देवीदेह के नीचे के दाँत गिरे थे। यहाँ की शक्ति वाराही और भैरव महारुद्र नाम से जाने जाते हैं।

उपसंहार

उपरोक्त सभी स्थान सिद्धपीठ हैं और देवताओं के लिए भी दुर्लभ हैं। इन शक्तिपीठों में आदिशक्ति माता जगदम्बा का नित्य वास रहता है। वहाँ भगवती के निमित्त जो भी हवन पूजन आदि करता है उसे उसका हजारों गुना फल मिलता है। वहाँ जप तप करनेवाले मनुष्य को महादेवी साक्षात् दर्शन देती हैं तथा ब्रह्महत्या आदि महापापों से भी प्राणी मुक्त हो जाते हैं।

इस लेख में हमने आपको विस्तार से 51 शक्तिपीठ के नाम और जगह के विषय में बताया है। अगर आपको हमारा यह प्रयास अच्छा लगा हो तो हमें अपना विचार कमेंट करके अवश्य बताएं।

यह भी पढ़ें:
माता सती का जन्म और 51 शक्तिपीठ की उत्पत्ति कथा

11 thoughts on “51 शक्तिपीठ के नाम और जगह | 51 Shakti Peeth List In Hindi”

  1. बहुत ही बढ़िया तरीके से आपने शक्तिपीठ को समझाया है

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  2. उत्तराखंड में खटीमा, वनबसा की पहाड़ी पर पूर्णगिरी – (पूर्णा देवी मंदिर ) शक्ति पीठ। जैसे कामगिरि (कामाख्या) है कामेश्वरी शक्ति हैं। पूर्णगिरी की शक्ति भगमलिनी है। योनि तीन भागों मे गिरी दो बताये तीसरा आप खोजें।

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  3. बिहार के मुंगेर शहर से 2 किमी दूर मां चंडिका का दाहिना आंख की पूजा होती है! और यह 100% सत्य है क्योंकि अंग देश की राजधानी का नाम मुंगेर थी और जहां दानवीर कर्ण प्रति दिन माता की पूजा कर सवा मन (लगभग 50किलो) सोना दान किया करते थे! पहले का मुद्गल पुरी के नाम पर ही मुंगेर नाम पड़ा!51 शक्ति पीठ में इस स्थान का भी नाम होना चाहिए था!

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  4. Sheetla Dham Kada, Kaushambi is also considered as 51 shaktipeeth where Right hand Kada of Sati’s hand dropped.

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