Tulsi mata ki kahani | तुलसी माता की कहानी

Tulsi mata ki kahani . सनातन हिन्दू धर्म में घर घर तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है। इसके पीछे धार्मिक के साथ साथ वैज्ञानिक कारण भी हैं। तुलसी एक बहुत ही सकारात्मक पौधा है । कहते हैं कि तुलसी का पौधा घर में लगाने और पूजा करने से घर के बहुत प्रकार के वास्तु दोष और नकारात्मकता दूर हो जाती है । साथ ही माता लक्ष्मी की हमेशा कृपा बनी रहती है।

Tulsi ki kahani, Tulsi mata ki kahani, Tulsi vivah, tulsi plant
Tulsi mata ki kahani

तुलसी के पत्तों में कुछ वाष्पशील तेल पाए जाते हैं जो हवा के संपर्क में आने से उसमे घुल मिल जाते हैं और हवा का शुद्धिकरण करते हैं। तुलसी के पौधे में औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। इसके पत्तों का नियमित सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता में जबरदस्त बढ़ोत्तरी होती है।

तुलसी के जन्म के पीछे एक पौराणिक कथा है। एक बार भगवान शिव के नेत्रों से तेजरूपी भयानक ज्वाला निकली जिसे सृष्टि की रक्षा के लिए शिवजी ने समुद्र में डाल दिया। भगवान शिव से निकले उस महान तेज से एक बालक का जन्म हुआ जो बहुत ही तेजस्वी और शक्तिशाली था। जल में जन्म होने के कारण उसका नाम जालंधर पड़ा।

कालांतर में जालंधर असुरों का राजा बना। जालंधर का विवाह दैत्यराज कालनेमि की पुत्री वृंदा के साथ हुआ। वृंदा परम ईश्वर भक्त और पतिव्रता स्त्री थी। जब भी जालंधर युद्ध में जाता था तब वृंदा पति की रक्षा के लिए भगवान के ध्यान में लीन हो जाती थी और जालंधर पतिव्रता स्त्री के तेज से युद्ध में सुरक्षित रहता था।

एक बार स्वर्ग का अधिपत्य पाने के लिए जालंधर असुरों की विशाल सेना के साथ देवताओं से जा भिड़ा। जालंधर के नेतृत्व में असुरों ने देवताओं को पराजित कर दिया और स्वर्ग पर असुरों का राज हो गया। देवतागण भागे भागे देवगुरु बृहस्पति के पास पहुँचे। बृहस्पति के कहने पर देवतागण भगवान विष्णु की शरण में पहुँचे।

देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु उनकी सहायता के लिए जालंधर से युद्ध करने गए। पर भगवान विष्णु शिव के तेज से उत्पन्न हुए जालंधर को पराजित नहीं कर सके और उसे वर मांगने को कहा। जालंधर ने चालाकी से भगवान विष्णु को लक्ष्मी सहित अपने महल में रहने का आग्रह किया जिसे भगवान विष्णु मना नहीं कर सके इस तरह जालंधर ने भगवान विष्णु से भी अभय प्राप्त कर लिया।

इसके बाद हारकर देवतागण देवगुरु बृहस्पति के साथ भगवान शिव की शरण में गए। देवताओं की सहायता के लिए भगवान शिव जालंधर से युद्ध करने गए पर भगवान शिव भी उसे पराजित नहीं कर पाए। तब भगवान विष्णु शिवजी के पास पहुँचे और कहा कि ‘हे देव, जो आप अपने ही तेज से उत्पन्न जालंधर को पराजित नहीं कर पा रहे हैं उसका कारण जालंधर की पतिव्रता स्त्री वृंदा के सतीत्व की शक्ति है। आप जालंधर से युद्ध करें और मैं वृंदा का ध्यान भटकाने का प्रयत्न करूंगा क्योंकि जालंधर का वध सृष्टि के कल्याण के लिए आवश्यक है।’

ये कहकर भगवान विष्णु जालंधर का रूप धरके उसके महल पहुँचे तब वृंदा अपना पति आए समझकर तप छोड़कर उनकी सेवा सत्कार में लग गयी। इधर युद्ध में भगवान शिव ने जालंधर का वध कर दिया। जालंधर का वध होते ही दूत वृंदा को खबर देने पहुँचे तब वृंदा को समझ में आ गया की उनके साथ छल हुआ है।

तब वृंदा ने भगवान विष्णु को अपने असली रूप में आने को कहा और उनको पत्थर हो जाने का श्राप दे दिया और स्वयं योगाग्नि में प्रज्जवलित होने को उद्दत हुईं। पर तभी वहां सभी देवि देवता पहुँचे और माता लक्ष्मी वृंदा से भगवान विष्णु को श्राप मुक्त करने का अनुरोध किया जिसे मानकर वृंदा ने भगवान विष्णु को तो क्षमा कर दिया पर स्वयं योगाग्नि में भस्म हो गयी। तब उसी भस्म से एक पौधा उत्पन्न हुआ जिसे तुलसी कहा गया।

भगवान विष्णु के उसी पत्थर रूप यानि शालिग्राम से तुलसी विवाह की परंपरा शुरू हुई। आज भी कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को प्रति वर्ष तुलसी विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। जहाँ भी तुलसी की पूजा होती है वहां लक्ष्मी और नारायण की कृपा सदैव बनी रहती है। भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है बिना तुलसी के उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है।

Tulsi mata ki kahani

Leave a Comment